मकर सक्रांति सूर्य के धनु रेखा से मकर रेखा में प्रवेश करने पर मनाई जाती है। मकर सक्रांति के दिन से भगवान सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश करते हैं। भगवान सूर्य को ग्रहों का राजा कहा जाता है। इस दिन से सूर्य ग्रह1 महीने के लिए मकरराशि में प्रवेश करता है। मकर राशि को मूलतः शनि ग्रह की राशि माना जाता है। मकर सक्रांति के दिन भगवान सूर्य की आराधना की जाती है और भगवान सूर्य से हम अपनी फसलों की और खुद की उन्नति की प्रार्थना करते हैं। इस दिन से दिन बड़े और रातें छोटी होना शुरू हो जाती है। मकर सक्रांति के दिन से जाड़ा धीरे-धीरे कम पड़ना शुरू हो जाता है और गर्मी की शुरुआत होने लगती है। हिंदू धर्म में मकर सक्रांति का विशेष महत्व है। साल भर में 12 सक्रांति मनाई जाती है जिनमें मकर सक्रांति का सबसे अधिक महत्व है । देश के अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग नामों से मकर संक्रांति मनाई जाती है।
मकर संक्रांति 2023 की कब है?
मकर सक्रांति हमेशा से ही 14 जनवरी को मनाई जाती थी पर इधर बीते कुछ सालों से मकर सक्रांति के विषय में संशय है। कुछ लोग इसे अभी भी 14 जनवरी को मनाते हैं तो कुछ लोग15 जनवरी को ।ज्योतिष के अनुसार मकर सक्रांति उस दिन मनाई जाती है जिस दिन सूर्य मकर रेखा में प्रवेश करता है। इस साल सूर्य 14 जनवरी की रात को मकर राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्य 14 जनवरी को रात के 1:25 पर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। मकर सक्रांति उस दिन मनाई जाती है जिस दिन सूर्य सूर्योदय के समय मकर राशि में प्रवेश कर चुके होते हैं।सक्रांति का अर्थ है कि सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश होना। जिस दिन रात में संक्रांति होती है उस दिन अगले दिन पुण्य काल में सक्रांति को मनाया जाता है। इसलिए निर्विवाद रूप से 15 जनवरी के दिन ही विद्वानों के अनुसार मकर सक्रांति मनाई जाएगी।
सदियों से मकर सक्रांति 14 जनवरी के दिन मनाई जाती थी। अब लेकिन15 जनवरी को मकर सक्रांति मनाई जाती है। पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमते समय प्रतिवर्ष 55 विकला या 72 से 90 सालों में एक अंश पीछे रह जाती है। इससे सूर्य मकर राशि में 1 दिन देरी से प्रवेश करता है। कहते हैं कि करीब सत्रह सौ साल पहले मकर सक्रांति 22 दिसंबर को मनाई जाती थी जिसे हम बड़ा दिन भी कहते हैं। 19वीं सदी में मकर सक्रांति 13 जनवरी को मनाई जाती थी। इसके बाद पृथ्वी के घूमने की गति के कारण धीरे-धीरे यह 14 जनवरी पर आई और अब धीरे-धीरे यह एक 1 दिन में बदल गया है। जिसके कारण मकर सक्रांति अब 15 जनवरी को मनाई जाती है।
मकर संक्रांति का शुभ मुहूर्त कब है
पुण्य काल मुहूर्त 7:00 बज के 15 मिनट 13 सेकंड से शुरू होकर 12:30 तक रहेगा इसकी समयावधि 5 घंटे 14 मिनट रहेगी मकर संक्रांति का महा पुण्य काल मुहूर्त 7:15 13 सेकंड से 9:15 13 सेकंड तक रहेगा। इस समय काल में गंगा स्नान जप और दान का विशेष महत्व है। इसकी अवधि 2 घंटे की होगी सक्रांति पल की शुरुआत 14 जनवरी को 20:21 43 सेकंड पर होगी।
मकर सक्रांति पूजा विधि
मकर सक्रांति की पूजा भगवान सूर्य की पूजा मानी जाती है इस दिन भगवान सूर्य के बीज मंत्र का जाप किया जाता है सूर्य के सूर्य मंत्र ओम सूर्याय नमः, ओम हीं हीं सूर्याय नमः हैं। इस दिन की मान्यता है कि भगवान सूर्य के इनमें से किसी भी मंत्र का जाप करने से, सूर्य चालीसा का जाप करने से भगवान सूर्य की विशेष कृपा भक्त पर बनी बनी रहती है। मकर सक्रांति की पूजा के लिए मकर सक्रांति के दिन सुबह शुभ मुहूर्त में गंगा स्नान के पश्चात, अगर गंगा स्नान संभव ना हो तो गंगाजल में जल मिलाकर स्नान कर ले। स्नान करने वाले जल में काला तिल और थोड़ा सा गुड़ भी मिला ले। स्नान के पश्चात तांबे के लोटे में गंगाजल में जल मिलाकर, काला तिल, गुड़, लाल चंदन, लाल पुष्प, अक्षत आदि मिलाकर सूर्य को जल चढ़ाएं। अर्ध्य समय भगवान सूर्य के बीज मंत्र का जाप करें।
विभिन्न प्रदेशों में मकर सक्रांति के विभिन्न नाम
उत्तर प्रदेश में मकर सक्रांति को दान के पर्व के रूप में माना जाता है। उत्तर प्रदेश में मकर सक्रांति को मकर सक्रांति के नाम से ही जाना जाता है। उत्तर प्रदेश में मकर सक्रांति का अर्थ है कि आप अपने शुभ कार्य की शुरुआत कर सकते हैं। मकर सक्रांति के दिन गंगा स्नान के बाद दान दिया जाता है। नदियों के विभिन्न घाटों पर मेले लगते हैं। इस दिन मुख्य रूप से उड़द की दाल की खिचड़ी और तिल के लड्डू बनाए जाते हैं। और आसमान पर पतंगे उड़ाई जाती है। पंजाब और हरियाणा में इसे एक दिन पहले लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन अग्नि देव की पूजा करते हैं।
तिल गुड़, चावल और पॉपकॉर्न की अग्नि में आहुति दी जाती है। जिस घर में शादी हुई होती है या किसी बच्चे का जन्म हुआ होता है उस घर में विशेष तौर पर यह पर्व मनाया जाता है। अपने सगे संबंधी, रिश्तेदारों, पड़ोसियों के साथ मिल बांट कर इस पर्व का आनंद लिया जाता है। लोहड़ी के लोकगीत गाए जाते हैं। बंगाल में इस पर्व पर गंगा जी में स्नान किया जाता है और उसके बाद तिल का दान किया जाता है। पश्चिमी बंगाल में गंगा सागर में बहुत बड़ा मेला लगता है। बिहार में मकर संक्रांति को खिचड़ी के रूप में माना जाता है। यहां उड़द की दाल, चावल की खिचड़ी बनाई जाती है। अन्न, तिल व वस्त्र दान किए जाते हैं। तमिलनाडु में इस त्यौहार को पोंगल के नाम से जानते हैं।