फरवरी माह (माघ माह) के व्रत और त्योहार

फरवरी माह (माघ माह) के व्रत और त्योहार

हिंदू धर्म में पूजा व्रत और त्योहार का विशेष महत्व है। हर माह में कोई न कोई ब्रत वत्यौहार अवश्य पड़ता है। हिंदू धर्म का पंचांग अंग्रेजी कैलेंडर से अलग होता है और पंचांग अलग से देख और समझ पाना थोड़ा मुश्किल होता है। इसलिए आइए आपकी इस मुश्किल को आसान करते हैं और जानते हैं कि फरवरी माह में कौन-कौन से व्रत और त्योहार पड़ने वाले हैं।

1 फरवरी जया एकादशी

माघ माह में कृष्ण पक्ष में जो एकादशी आती है उसे जया एकादशी कहते हैं। फरवरी माह में 1 फरवरी को जया एकादशी मनाई जाएगी। हर माह में दो एकादशी होती है कृष्ण पक्ष की और शुक्ल पक्ष की। साल भर की एकादशी में जया एकादशी का एक विशेष महत्व होता है। जया एकादशी के व्रत के पुण्य से व्यक्ति को और उसके पूर्वजों को भूत, प्रेत, पिशाच योनि से मुक्ति मिलती है। व्यक्ति को मृत्यु के बाद परमधाम की प्राप्ति होती है। भगवान विष्णु की कृपा से उसके सभी पाप का नाश होते हैं। जया एकादशी के दिन फूल, फल, तुलसी दल नहीं तोड़ने चाहिए। इस दिन दान में मिला हुआ भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए। एकादशी के व्रत में शलगम, पालक, चावल, पान, गाजर, बैंगन, गोभी, जौ नहीं खाना चाहिए। जया एकादशी के दिन दाढ़ी बनाना, नाखून काटना, बाल काटना, झाड़ू लगाना वर्जित होता है एकादशी व्रत में भगवान विष्णु की पूजा करते समय पंचामृत एवं तुलसीदल का अवश्य प्रयोग करें। एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद कर ले। उस दिन आपके घर अगर कोई भिक्षुक आए तो उसे अवश्य भिक्षा डालें।

2 फरवरी तिल द्वादशी

2 फरवरी को तिल द्वादशी मनाई जायेगी। माघ माह की कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को तिल द्वादशी का व्रत किया जाता है। इस दिन तिल के दान का विशेष महत्व है। इस दिन तिल का दान करने से मनुष्य को उसके समस्त पाप कर्मों से मुक्ति मिलती है। जो व्यक्ति तिल का दान करता है उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है और उसके सभी कार्य सिद्ध होते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा व्रत करने से राज सूर्य यज्ञ के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है। तीर्थ द्वादशी के दिन गंगास्नान जप और दान का विशेष महत्व होता है। द्वादशी के दिन तिल दान करने से और तिल का तर्पण करने से पितृ प्रसन्न होते हैं।

तिल द्वादशी के दिन तिल युक्त जल से स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप कर्म नष्ट होते हैं। इस दिन भगवान विष्णु के ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए। शास्त्रों में माघ मास को पवित्रम मास माना गया है और हर तिथि को एक पर्व माना गया है। अगर हम पूरे माघ मास में गंगा स्नान ना कर पाए और द्वादशी तिथि को स्नान कर लेते हैं तो माघ स्नान व व्रत की पुण्य प्राप्ति हो जाती है। गंगा स्नान न भी कर पाए तो गंगाजल में तिल डालकर स्नान करने से व्यक्ति को पाप कर्म से मुक्ति मिल जाती है।

3 फरवरी प्रदोष व्रत

3 फरवरी को माघ माह का प्रदोष व्रत मनाया जाएगा। प्रदोष भगवान शिव के लिए किया जाने वाला व्रत है। प्रदोष काल में प्रदोष व्रत का पारण किया जाता है। प्रदोष काल सूर्यास्त से पहले के समय को कहते हैं। इस व्रत में व्यक्ति निर्जल व निराहार रहकर व्रत करता है। इस दिन ब्रह्ममुहूर्त में स्नान ध्यान के पश्चात शिवलिंग पर बेलपत्र का पंचामृत चढ़ाते हैं। संध्या समय शिव भगवान की पूजा करके कथा सुनते हैं। सप्ताह के सातों दिन के प्रदोष व्रत के प्रभाव अलग-अलग होते हैं। सोमवार के दिन पढ़ने वाले प्रदोष व्रत को सोम प्रदोष, मंगलवार के दिन पढ़ने वाले प्रदोष को भौम प्रदोष और शनिवार के दिन पढ़ने वाले प्रदोष को शनि प्रदोष कहा जाता है। 2 शहरों के प्रदोष व्रत का समय भी उनके अनुसार हो सकता है क्योंकि यह सूर्यास्त के समय त्रयोदशी होने पर होता है। कहीं-कहीं प्रदोष व्रत त्रयोदशी से 1 दिन पूर्व भी हो जाता है।

प्रदोष व्रत के भोजन में नमक मिर्च का प्रयोग ना करें। सोमवार के दिन पढ़ने वाला प्रदोष व्रत आरोग्य व स्वास्थ्य प्रदान करता है। मंगलवार के दिन पढ़ने वाला प्रदोष व्रत रोगों से मुक्ति प्रदान करता है। बुधवार के दिन पढ़ने वाले प्रदोष व्रत को करने से आपकी सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है। गुरुवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत से शत्रुओं का नाश होता है। शुक्रवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत से सुखी दांपत्य जीवन प्राप्त होता है। शनिवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत के संतान प्राप्ति होती है। प्रदोष व्रत को 11 या 26 त्रयोदशी तक रखने के बाद उद्यापन करें। उद्यापन से पूर्व भगवान गणेश जी की प्रार्थना करें व हवन करें नित्य पूजा के बाद अपने सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मणों को दान करें।

5 फरवरी पूर्णिमा व्रत

5 फरवरी को व्रत स्नान दान की पूर्णिमा मनाई जाएगी।
पूर्णिमा शुक्ल पक्ष में होती है। माघ मास की पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा होती है कहा जाता है कि माघ मास में भगवान विष्णु जल में निवास करते हैं इसलिए पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व है। गंगा, सरस्वती, काली, कावेरी, ब्रह्मपुत्र, यमुना आदि नदियां हमारे देश की पवित्र नदियों में मानी जाती है। पूर्णिमा का व्रत मां लक्ष्मी व भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। इस दिन साफ सफाई का विशेष महत्व होता है इस दिन सुबह-सुबह उठकर सर्वप्रथम घर की साफ सफाई करने के पश्चात घर में गंगाजल से छिड़काव करना चाहिए।

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मुख्य द्वार पर तोरण लगाने चाहिए। तोरण आम के पत्ते या अशोक के पत्ते की होते हैं। माघ पूर्णिमा के दिन गरीब व जरूरतमंद व्यक्तियों को तेल, कंबल, घी, फल आदि वस्तु का दान करना चाहिए। इस दिन मंदिर में घी का अखंड दीपक जलाकर उसमें 4 लौंग रखें। ऐसा करने से घर में सकारात्मकता रहती है। मां पूर्णिमा के दिन विष्णु सहस्रनाम, गजेंद्र मोक्ष, भगवत गीता का पाठ करना विशेष फलदायक होता है। ऐसा करने से परिवार के सभी सदस्य संस्कारवान होते हैं और घर में सुख संपन्नता का वास होता है। घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। आपके सभी कार्य सफल होने लगते हैं। माघ पूर्णिमा का दिन मां लक्ष्मी का दिन माना जाता है। इसलिए इस दिन सुबह पीपल के पेड़ पर जल चढ़ा कर घी का दीपक जलाना चाहिए। मां लक्ष्मी को सफेद फूल और लाल फूल पसंद है इसलिए मां को सफेद व लाल फूल अर्पित करने चाहिए। ऐसा करने से मां की आप पर कृपा हमेशा बनी रहती है।

9 फरवरी गणेश चतुर्थी

9 फरवरी को गणेश चतुर्थी व्रत मनाया जाएगागणेश चतुर्थी का व्रत शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में आता है। प्रत्येक माह में दो चतुर्थी आती हैं कृष्ण पक्ष व शुक्ल पक्ष की। हर चतुर्थी का अपना विशेष महत्व होता है। 9 फरवरी को सुबह 6:30 से 10 फरवरी सुबह 7:58 तक चतुर्थी रहेगी। माघ के महीने में कृष्ण पक्ष में पढ़ने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं।
कृष्ण पक्ष में चंद्रमा थोड़ी देर से ही निकलते हैं तो उस समय तक व्रती भगवान गणेश जी का ध्यान जप करता है। इस दिन भगवान गणेश की गणेश चालीसा व गणेश अर्थव स्त्रोत का पाठ करना चाहिए।

इस दिन गणेश जी के सिद्धि मंत्र का 108 बार जप करें। इस दिन भगवान गणेश के ओम गम गणपतए नमः ओम नमः, विघ्नविनाशकाए नमः, सिद्धिविनायकाए नमः आदि मंत्रों का 108 बार जप करना चाहिए। जब रात में चंद्रमा के दर्शन हो जाते हैं तो कच्चे दूध से चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। चंद्रमा को अर्घ्य देते समय सर्वप्रथम गणेश जी का ध्यान किया जाता है फिर चंद्रमा का ध्यान करते हुए ओम सोम सोमाय नमः मंत्र का जप करते हुए तीन या सात परिक्रमा लगाई जाती है। उसके बाद उस जल को तुलसा जी में डाल दिया जाता है।

इस व्रत में पूरे दिन भगवान गणेश के नाम के जाप को मन ही मन करते रहना चाहिए। व्रत के साथ-साथ अपने यथा योग्य दान व पूण्य भी अवश्य करना चाहिए। अधिकतर लोग इसको निराहार ही करते हैं तो कुछ लोग भोजन में केवल फल, सब्जी और फलों की जड़ ग्रहण करते हैं। शकरकंद आलू आदि इस व्रत में खाया जाता है। कुछ लोग संकष्टी चतुर्थी के व्रत में रात को मीठे से पारण करते हैं। कुछ लोग रात में एक समय भोजन ग्रहण करके भी व्रत रखते हैं।

इस चतुर्थी का काफी धार्मिक महत्व होता है। माघ माह में कृष्ण पक्ष के दिन मंगलवार के दिन पड़ने वाली चतुर्थी को अंगारकी चतुर्थी भी कहते हैं। मंगलवार के दिन पढ़ने वाली चतुर्थी काफी शुभ मानी जाती है। इस चतुर्थी को लंबोदर संकष्टी चतुर्थी भी कहते हैं। संकष्टी चतुर्थी का व्रत भगवान गणेश की प्रसन्नता के लिए किया जाता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा व्रत करने से भगवान गणेश अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूर करते हैं तथा सुख शांति व संतान सुख का आशीर्वाद देते हैं।गणेश चतुर्थी के व्रत को अधिकतर लोग निराहार ही करते हैं किंतु बुजुर्ग लोग और गर्भवती महिलाओं के लिए ऐसा करना जोखिम से भरा हो सकता है। ऐसे में उन्हें फल और जूस का सेवन अवश्य कर लेना चाहिए।

ऐसे व्यक्तियों को पानी खूब पीना चाहिए यह तो संभव नहीं है कि वह पूरे दिन कुछ खाते रहें लेकिन कुछ समय के अंतराल पर फल, मेवे आदि खाते रहना चाहिए। खुद को भूखा बिल्कुल भी ना रखें। साबूदाने की खिचड़ी मूंगफली, दही के आलू भी व्रत में बनाया जाने वाला फलाहार है। कुट्टू के साथ सिंघाड़े या चौलाई के आटे को भी मिक्स करके उसकी रोटी या परांठे बनाए जा सकते हैं। व्रत में चाय कॉफी अधिक न पीकर पानी जूस और दूध का सेवन अधिक करना चाहिए। व्रत के दौरान खुद को समय-समय पर हाइड्रेटेड करते रहे। संकष्टी चतुर्थी के दिन काले तिल के लड्डू बनाने का बहुत महत्व है। कहते हैं कि भगवान गणेश जी को तिल अति प्रिय है। तिल का सेवन मनुष्य को ब्रज के समान मजबूत व हर परेशानी को तिल के समान छोटा समझने वाला बनाता है। रात के समय चंद्रोदय होने पर चंद्रमा को अर्घ्य देकर व भगवान गणेश जी को भोग लगा कर इस व्रत का पारण किया जाता है।

13 फरवरी कुंभ सक्रांति

13 फरवरी को फाल्गुन संक्रांति( कुंभ) मनाई जाएगी। सूर्य हर महीने एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं जिस राशि में सूर्य प्रवेश करते हैं उस माह उस राशि के नाम से सक्रांति मनाई जाती है। 13 फरवरी 2023 को सोमवार के दिन सूर्य मकर राशि से कुंभ राशि में प्रवेश करेंगे। इसलिए इस दिन कुंभ संक्राति मनाई जाएगी।

सूर्य 13 फरवरी 2023 को सुबह 9:44 पर कुंभ राशि में प्रवेश करेंगे इस संक्रांति का पुण्य काल मध्यान्ह तक रहेगा। इस दिन सुबह स्नान के बाद सूर्य भगवान को जल अर्पण करें और व्रत व दान करने का संकल्प लें। इस दिन सूर्य मंत्र व गायत्री मंत्र का जाप करें। विष्णु सहस्त्रनाम के पाठ का श्रवण करें या उसका जाप करें इस दिन पूजा पाठ जप वा दान का विशेष महत्व होता है। इस दिन आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ अवश्य करना चाहिए। इस दिन सोने, चांदी, पीतल या तांबे आदि धातु धातु के कलश दान किये जाते हैं। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व है। कुंभ संक्रांति के दिन स्नान के पश्चात नए वस्त्र धारण करने चाहिए। इस दिन गर्म कपड़े, शुद्ध देसी घी का दान विशेष रूप से शुभ माना जाता है। कहते हैं इस दिन जो व्यक्ति स्नान नहीं करता उससे मां लक्ष्मी रुष्ट हो जाती हैं।

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15 फरवरी बुधवार बसंत पंचमी

15 फरवरी को बुधवार के दिन बसंत पंचमी, सरस्वती जयंती मनाई जाएगी। बसंत पंचमी माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है इस दिन विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा की जाती है इस दिन मां सरस्वती का जन्मदिन होता है जिसके आयोजन में प्रकृति भी भरपूर श्रृंगार करती है इस दिन वसंत ऋतु का आगमन होता है और धरती पीले रंग के फूलों से सज जाती है। इस दिन विद्यार्थी एवं कलाकार मां सरस्वती की पूजा करते हैं। मां सरस्वती से ज्ञान प्रदान करने की प्रार्थना करते हैं। इस वर्ष बसंत पंचमी पर अमृत सिद्धि योग बन रहा है। पूरे दिन बसंत पंचमी योग रहेगा जोकि ज्योतिष के अनुसार काफी शुभ है। इस बार बसंत पंचमी पर रेवती नक्षत्र रहेगा जो कि काफी शुभ होता है ।

यह नक्षत्र बुध का नक्षत्र माना जाता है और बुध को बुद्धि चातुर्य वाकपटुता में निपुण कहा गया है। इसलिए इस दिन का विशेष महत्व है इस दिन मां सरस्वती की मिट्टी की प्रतिमा लाकर स्थापित की जाती है व उसकी विधि विधान से पूजा की जाती है। इस दिन बच्चों को अक्षर ज्ञान की शुरुआत कराई जाती है। इस दिन घर में पीला भोजन बनता है और लोग पीले रंग के वस्त्र पहनते हैं। कई जगह बसंत पंचमी के दिन मेलों का आयोजन किया जाता है। बसंत पंचमी का दिन सिखों के लिए भी विशेष है क्योंकि उस दिन सिखों के दशवें गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म हुआ था।

16 फरवरी विजया एकादशी

16 फरवरी को विजया एकादशी व्रत मनाया जाएगा।
जैसा कि नाम से ही ज्ञात हो रहा है कि विजया एकादशी का व्रत शत्रुओं के ऊपर विजय प्राप्त करने के लिए रखा जाता है। 17 फरवरी को विजया एकादशी व्रत वैष्णव मतानुसार मनाया जाएगा। इस दिन श्री हरि की पूजा की जाती है। विष्णु सहस्त्रनाम, गजेंद्र मोक्ष का पाठ किया जाता है और निराहार व्रत रहा जाता है। एकादशी के व्रत के दिन साबूदाना, चावल खाना निषेध है। विजय एकादशी के दिन पीपल के पेड़ की पूजा से कर्ज से मुक्ति मिलती है। यदि विजय एकादशी के दिन तुलसी चौरा पर गाय के घी का दीपक रखा जाता है तो घर में सुख शांति रहती है। भगवान विष्णु को तुलसीदल अति प्रिय है इसलिए इस व्रत में पीले फूल व तुलसीदल अर्पित किए जाते हैं।

18 फरवरी शनि प्रदोष व्रत महाशिवरात्रि

18 फरवरी को शनि प्रदोष व्रत महाशिवरात्रि व्रत मनाया जाएगा फागुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को प्रदोष व्रत मनाया जाता है। इस बार यह 18 फरवरी दिन शनिवार को पड़ रही है इसलिए इस व्रत को शनि प्रदोष व्रत कहा जाएगा। प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा होती है। शनि प्रदोष व्रत पुत्र की प्राप्ति के लिए किया जाता है। इस बार शिवरात्रि व शनि प्रदोष व्रत एक साथ पड़ रहे हैं यह एक दुर्लभ संयोग है। इस व्रत को सच्चे मन से करने से आपकी हर मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी। इस दिन शिवलिंग पर गंगा जल में काले तिल मिलाकर स्नान कराएं।

ओम नमः शिवाय का जाप 108 बार करें शिव चालीसा व आरती के पाठ के बाद शनि चालीसा का पाठ भी अवश्य करें। शनि प्रदोष के दिन पीपल पर कच्चे दूध में गंगाजल व शहर मिलाकर अर्पित करें अपने पूर्वजों के लिए किसी मीठे का दान भी करें। इस समय कुंभ, मकर, धनु, तुला, मिथुन इन पांच राशियों पर शनि की साढ़ेसाती चल रही है। इन राशियों के जातकों को यह शनि प्रदोष व्रत व शिवरात्रि व्रत अवश्य करना चाहिए। उन पर शनि का प्रकोप नही होगा व शनिदेव की कृपा उन पर रहेगी।

20 फरवरी सोमवती अमावस्या

20 फरवरी को दिन सोमवार को सोमवती अमावस्या मनाई जाएगी। सोमवती अमावस्या के दिन सुहागिन औरतें पीपल के वृक्ष की परिक्रमा करती हैं व व्रत रखती हैं। इस दिन भगवान शंकर व मां पार्वती की पूजा की जाती है। जिन व्यक्तियों का चंद्रमा कमजोर होता है उन्है भी इस व्रत को अवश्य करना चाहिए। भगवान शंकर की पूजा करने से चंद्रमा भी मजबूत होता है। इस दिन गंगा स्नान, ध्यान, जप व दान का विशेष महत्व है। सोमवती अमावस्या के दिन सुहागिन महिलाएं तुलसी मां के 108 परिक्रमा करते हुए किसी भी वस्तु, फल, अन्न या कपड़ों को दान करने का संकल्प लेती हैं।

सोमवती अमावस्या के दिन सुबह के समय पीपल के वृक्ष की 108 परिक्रमा उसे कलावे से लपेटते हुए करनी चाहिए। परिक्रमा करने के पश्चात पीपल के पेड़ पर घी का दिया जलाना चाहिए। पीपल के पेड़ को शनिवार के अतिरिक्त किसी और दिन छूना वर्जित होता है अतः कोशिश करनी चाहिए कि पीपल को स्पर्श न किया जाए और पूजा करने के पश्चात भगवान से क्षमा प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए। उसके बाद यथाशक्ति ब्राह्मणों को भोजन दान करके उनका आशीर्वाद लेना चाहिए। कालसर्प दोष से प्रभावित व्यक्तियों को इस दिन भगवान शिव के शिवलिंग में जाकर बिल्वपत्र चढ़ाने चाहिए।

21 फरवरी फुलेरा दूज

फुलेरा दूज फागुन माह की शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को मनाई जाती है इस साल 21 फरवरी रविवार को फुलेरा दूध मनाई जाएगी। फुलेरा दूज 21 फरवरी रविवार को सुबह 9:05 पर प्रारंभ होगी और 22 फरवरी 5 बज कर 55 मिनट पर समाप्त होगी। फुलेरा दूज होली के आगमन का प्रतीक होती है इस दिन के बाद से ही होली की तैयारियां शुरू हो जाती है। वैसे तो बसंत पंचमी के बाद से ही होली की तैयारियां शुरू हो जाती हैं होलीका दहन के लिए पहली लकड़ी बसंत पंचमी के दिन ही रखी जाती है। तो कुछ ज्योतिषी कहते हैं कि फुलेरा दूज के दिन से ही होलिका दहन के लिए पहले लकड़ी रखी जाती है। इस त्यौहार के दिन से गुलरिया बनने का कार्यक्रम शुरू होता है। गुलरिया होलिका दहन के दिन जलाई जाती है।

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ये गोबर के कंडो की से बनी छोटी-छोटी गोल टिकली होती हैं। गुलरिया को बनाते समय उनमें उंगली से छोटे-छोटे छेद कर दिए जाते हैं और इन्हें सुखा दिया जाता है। जब यह सूख जाती है तो इनकी 5 से 7 मालाएं बना ली जाती हैं। जिन्हें होलिका दहन के दिन होली में जलाया जाता है। फुलेरा दूज के दिन भगवान श्री कृष्ण के सभी मंदिर को फूलों से सजाया जाता है। फुलेरा दूज को फागुन माह का सबसे शुभ दिन माना जाता है इस दिन शरद ऋतु का आखिरी दिन होता है। जिस दिन विवाह, गृह प्रवेश आदि शुभ कार्य किए जा सकते हैं। इस दिन के लिए कहते हैं कि इस दिन किसी शुभ कार्य को करने के लिए किसी मुहूर्त की भी आवश्यकता नहीं होती। इस दिन भगवान श्री कृष्ण के लिए छप्पन भोग बनाए जाते हैं उन्हें भोग लगाया जाता है और गुलाल अर्पित किया जाता है। आज से ही होली की शुरूआत मथुरा बरसाना व ब्रज क्षेत्र में हो जाती है।

22 फरवरी को गणेश चतुर्थी व्रत मनाया जाएगा

22 फरवरी को बृहस्पतिवार के दिन शुक्ल पक्ष की गणेश चतुर्थी होगी जिसे हम विनायक चतुर्थी भी कहते हैं। गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन वर्जित होते हैं। गणेश चतुर्थी का व्रत विशेष फलदाई होता है इस दिन प्रति शाम के समय मीठे से अपने व्रत का पारण करते हैं।
इस दिन भगवान गणेश का व्रत पूजन किया जाता है। स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें। फिर भगवान गणेश को एक चौकी पर विराजमान कर उनके व्रत का संकल्प लें। भगवान गणेश का व्रत करने का संकल्प लेकर ही व्रत आरंभ करें। भगवान गणेश को दूर्वा घास अति प्रिय है अतः इसे जोड़े में भगवान को अर्पित किया जाता है।

इस दिन पूरे दिन उपवास रखा जाता है। अगर निराहार रहना संभव ना हो कुछ फल, दूध, मेवे आदि पूजा करने के बाद लिए जा सकते हैं। भगवान गणेश की पूजा शाम को की जाती है। शाम के समय शकरकंद, मूली, मिष्ठान, लड्डू आदि का भगवान गणेश को भोग लगाया जाता है। भगवान गणेश रिद्धि सिद्धि के दाता है और उनकी पूजा सच्चे मन से करने से व्यक्ति की हर मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है ऐसा विश्वास है।

27 फरवरी होलाष्टक, कामदा सप्तमी व्रत

27 फरवरी को शुक्रवार कोहोलाष्टक प्रारंभ होंगे। व कामदा सप्तमी व्रत मनाया जाएगा।
होलाष्टक प्रारंभ
27 फरवरी को होलाष्टक प्रारंभ होंगे। होली के पहले के आठ दिनों को होलिका अष्टक कहा जाता है। इन 8 दिनों में कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता। इस दिन किसी का विवाह सगाई गृह प्रवेश आदि शुभ कार्य हिंदू परिवारों में नहीं किया जाता। कहते हैं कि सती के वियोग के बाद भगवान शिव घोर तपस्या में लीन हो गए थे। इंद्रदेव ने कामदेव को भगवान शिव की तपस्या को भंग करने के लिए भेजा। कामदेव ने शिव जी की तपस्या भंग करने का प्रयास किया। जिसके कारण क्रोधित होकर शिवजी ने उन्हें अष्टमी तिथि को भस्म कर दिया। कामदेव की पत्नी रति ने ने 8 दिनों तक भगवान शिव की आराधना और तपस्या की थी। जिससे भगवान ने कामदेव को पुनः जीवित कर दिया था। जिसके कारण होलिका अष्टक को शुभ नहीं माना जाता। ऐसी भी मान्यता है कि होलिका अष्टक के दिन होलिका ने प्रहलाद को अपने वस्त्र पहना दिए थे। वह खुद आग में भस्म हो गई थी इसीलिए इन दिनों कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता। होलिका अष्टक में हम होली उत्सव के साथ होलिका दहन की तैयारियां अवश्य कर सकते हैं। यह भी हो सकता है कि हमारे पूर्वजों ने होली की तैयारियों में लगने वाले समय को बचाने के उद्देश्य से इस समय किसी अन्य पारिवारिक कार्य को महत्वपूर्ण न माना हो। इसीलिए इस समय वे कोई सामाजिक व पारिवारिक त्योहारों को न मना कर सिर्फ होली की तैयारियों में ही स्वयं को लगाते हो।

कामदा सप्तमी व्रत सप्तमी सुबह 9:10 पर शुरू होगी और 28 जनवरी सुबह 8:43 पर समाप्त होगी कामदा सप्तमी का व्रत प्रत्येक मास की शुक्ल सप्तमी को किया जाता है। कम से कम 4 महीने पश्चात इस बात का पारण करना चाहिए। कामता सप्तमी का व्रत पूरे वर्ष भर किया जाने वाला व्रत है। कामदा सप्तमी का व्रत भगवान सूर्य को समर्पित होता है। कामता सप्तमी व्रत की महिमा भगवान विष्णु को स्वयं ब्रह्मा जी ने बताई थी। कहते हैं कि जिन्हें संतान प्राप्ति नहीं होती उन्हें यह व्रत अवश्य रखना चाहिए। यह व्रत कामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है।

इस व्रत को करने से भगवान सूर्य आपको पद, प्रतिष्ठा, स्वास्थ्य व सम्मान किसान समृद्धि प्रदान करते हैं। जिन व्यक्तियों की कुंडली में सूर्य नीच का होता है उन्हें समाज से सम्मान नहीं प्राप्त होता। उन्हें काफी दुख व तकलीफों का सामना करना पड़ता है। इस व्रत को करने से सूर्य बलवान होता है इस व्रत को करने के लिए षष्ठी के दिन एक समय भोजन करें और सप्तमी को निराहार रहे। भगवान सूर्य को जल चढ़ाने के पश्चात सूर्याय नमः मंत्र का जाप करें। अगले दिन अष्टमी को सूर्य देव को हवन पूजन करें। और जितनी आपकी सामर्थ्य हो उसके अनुसार सुपात्र को दान अवश्य दें।

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