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जानिए चक्र योग के बारे में – 7 chakras in human body yoga

[vc_column_text]भारत में प्रचीन काल से ही योग का विशेष महत्व रहा है भारत ने पूरे विश्व को योग रूपी एक बहुत ही सार्थक उपहार दिया है। आज की चिकित्सा पद्धति जिन रोगों का इलाज नहीं खोज पायी उन रोगों का इलाज भारत के ऋषि मुनियों द्वारा सृजित योग प्रणाली में मिल जाता है। योग प्रणाली में चक्र साधना को बहुत विशेष माना गया है। योग में चक्र प्राण या आत्मिक ऊर्जा के केन्द्र होते हैं। ये नाड़ियों के संगम स्थान भी होते हैं। अगर इन में सही तरीके से ऊर्जा का प्रवाह नहीं हो पाता है तो शरीर कमजोर पड़ने लगता है। भारतीय दर्शन में चक्रों की संख्या कुल सात बताई गई है। जो की निम्न लिखित प्रकार से है। [vc_custom_heading text=”1. मूलाधार चक्र” font_container=”tag:h2|text_align:left|color:%23ff0000″][vc_column_text]यह शरीर का पहला चक्र है। गुदा और लिंग के बीच 4 पंखुरियों वाला यह ‘आधार चक्र’ है। 99.9% लोगों की चेतना इसी चक्र पर अटकी रहती है और वे इसी चक्र में रहकर मर जाते हैं। जिनके जीवन में भोग, संभोग और निद्रा की प्रधानता है उनकी ऊर्जा इसी चक्र के आसपास एकत्रित रहती है। भोग, निद्रा और संभोग पर संयम रखते हुए इस चक्र पर लगातार ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। [vc_custom_heading text=”2. स्वाधिष्ठान चक्र ” font_container=”tag:h2|text_align:left|color:%23ff0000″][vc_column_text]यह वह चक्र है, जो लिंग मूल से 4 अंगुल ऊपर स्थित है जिसकी 6 पंखुरियां हैं। अगर आपकी ऊर्जा इस चक्र पर ही एकत्रित है तो आपके जीवन में आमोद-प्रमोद, मनोरंजन, घूमना-फिरना और मौज-मस्ती करने की प्रधानता रहेगी। यह सब करते हुए ही आपका जीवन कब व्यतीत हो जाएगा आपको पता भी नहीं चलेगा और हाथ फिर भी खाली रह जाएंगे।
जीवन में मनोरंजन जरूरी है, लेकिन मनोरंजन की आदत नहीं इस बात को दिमाग में अच्छी तरह से उतारना होगा। इसके जाग्रत होने पर क्रूरता, गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश होता है। [vc_custom_heading text=”3. मणिपुर चक्र ” font_container=”tag:h2|text_align:left|color:%23ff0000″][vc_column_text]नाभि के मूल में स्थित यह शरीर के अंतर्गत मणिपुर नामक तीसरा चक्र है, जो 10 कमल पंखुरियों से युक्त है। जिस व्यक्ति की चेतना या ऊर्जा यहां एकत्रित है उसे काम करने की धुन-सी रहती है। ऐसे लोगों को कर्मयोगी कहते हैं। ये लोग दुनिया का हर कार्य करने के लिए तैयार रहते हैं। ईसके सक्रिय होने से तृष्णा, ईर्ष्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह आदि कषाय-कल्मष दूर हो जाते हैं। [vc_custom_heading text=”4. अनाहत चक्र ” font_container=”tag:h2|text_align:left|color:%23ff0000″][vc_column_text]हृदयस्थल में स्थित द्वादश दल कमल की पंखुड़ियों से युक्त द्वादश स्वर्णाक्षरों से सुशोभित चक्र ही अनाहत चक्र है। अगर आपकी ऊर्जा अनाहत में सक्रिय है तो आप एक सृजनशील व्यक्ति होंगे। हर क्षण आप कुछ न कुछ नया रचने की सोचते हैं। आप चित्रकार, कवि, कहानीकार, इंजीनियर आदि हो सकते हैं।सके सक्रिय होने पर लिप्सा, कपट, हिंसा, कुतर्क, चिंता, मोह, दंभ, अविवेक और अहंकार समाप्त हो जाते हैं। और प्रेम व संवेदना का जागरण होता है। [vc_custom_heading text=”5. विशुद्धि चक्र ” font_container=”tag:h2|text_align:left|color:%23ff0000″][vc_column_text]कंठ में सरस्वती का स्थान है, जहां विशुद्ध चक्र है और जो 16 पंखुरियों वाला है। सामान्य तौर पर यदि आपकी ऊर्जा इस चक्र के आसपास एकत्रित है तो आप अति शक्तिशाली होंगे। कंठ में संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। इसके जाग्रत होने से जहां भूख और प्यास को रोका जा सकता है वहीं मौसम के प्रभाव को भी रोका जा सकता है। [vc_custom_heading text=”6. आज्ञा चक्र” font_container=”tag:h2|text_align:left|color:%23ff0000″][vc_column_text]भ्रूमध्य (दोनों आंखों के बीच भृकुटी में) में आज्ञा चक्र है। सामान्यतौर पर जिस व्यक्ति की ऊर्जा यहां ज्यादा सक्रिय है तो ऐसा व्यक्ति बौद्धिक रूप से संपन्न, संवेदनशील और तेज दिमाग का बन जाता है लेकिन वह सब कुछ जानने के बावजूद मौन रहता है। इसे बौद्धिक सिद्धि कहते हैं। भृकुटी के मध्य ध्यान लगाते हुए साक्षी भाव में रहने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। [vc_custom_heading text=”7. सहस्त्रार चक्र” font_container=”tag:h2|text_align:left|color:%23ff0000″][vc_column_text]सहस्रार की स्थिति मस्तिष्क के मध्य भाग में है अर्थात जहां चोटी रखते हैं। यदि व्यक्ति यम, नियम का पालन करते हुए यहां तक पहुंच गया है तो वह आनंदमय शरीर में स्थित हो गया है। ऐसे व्यक्ति को संसार, संन्यास और सिद्धियों से कोई मतलब नहीं रहता है। लगातार ध्यान करते रहने से यह चक्र जाग्रत हो जाता है और व्यक्ति परमहंस के पद को प्राप्त कर लेता है।

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