गणेश जी की मूर्ति की सूंड किस तरफ होनी चाहिए
गणेश जी की सूंड के विषय में अलग-अलग मतों में अलग-अलग विचार है। हमने हमेशा अपने घरों में गणेश जी की मूर्ति बाई और मुड़ी हुई देखी है। ऐसा कहा जाता है कि घर में गणेश जी की दक्षिण मुखी सूंड वाली मूर्ति नहीं लगाई जाती। अगर गणेश जी की मूर्ति में सूंड दक्षिण की ओर मोड़कर बनाई जाती है तो यह शुभ नहीं होता है। वह मूर्ति अपने आप ही टूट जाती है। आमतौर पर गणेश जी की मूर्ति में दक्षिणावर्ती सूंड मंदिरों में ही देखी जाती है।
कहते हैं कि गणेश जी की मूर्ति की दक्षिणावर्ती सूंड बाली मूर्ति की भली प्रकार से विधि विधान पूर्वक पूजा अर्चना करनी चाहिए। अगर उस पूजा में कोई चूक होती है तो गणेश जी रूष्ट भी हो कते हैं। लेकिन अगर हमने विधि विधान पूर्वक गणेश जी की दक्षिण मुखी सूड वाली मूर्ति की पूजा की तो गणेश जी की कृपा हम पर निरंतर बनी रहती है। दक्षिण मुखी सूंड वाली मूर्ति की सही प्रकार से उपासना की जाए तो वह मनोवांछित फल देने वाली होती है। आइए जानते हैं कि गणेश जी की सूंड किस तरफ होनी चाहिए।
गणेश जी की सूंड किस तरफ शुभ होती है
क्या अर्थ है गणेश जी की सूड के मुड़े या सीधे होने का
गणेश जी की सूंड हमें स्बर विज्ञान एवं भाग्य का सकेत देती है। हमारी सांस लेते समय एक नाक कम व एक नाक ज्यादा चल रही होती है। दाहिनी नाक को सुर्य स्वर व बाई नाक को चंद्र स्वर कहते है। जिस समय हमारी जिस नाक से हम सांस आसानी से ले पा रहे होते हैं वही स्वर चल रहा होता है। अगर हमारा सूर्य स्वर चल रहा है तो हमें शारीरिक परिश्रम, भोजन करना चाहिए। यदि हमारा बाया स्वर चले तो हमें पेय पदार्थ अधिक लेने चाहिए। और पढ़ाई व दिमाग को चलाने वाला काम करना चाहिए। अगर हम खाना खाने के बाद बाई करवट लेट जाते हैं तो हमारा दाया स्वर चलने लगता है। जिससे हमारा भोजन आसानी से पचता है। खाने के आधे घंटे बाद ही दाहिनी करवट लेट कर चंद्र स्वर लाकर हम पानी पीते हैं। गणेश जी की विभिन्न मुद्रा में सूंड वाली मूर्तियों के अर्थ भी अलग-अलग होते है।
गृहस्थ लोगों के लिए, सन्यासी लोगों के लिए और मंदिर में अलग-अलग मुद्राओं वाली सूंड वाले गणेश जी की मूर्ति स्थापित की जाती है। गणेश जी की सूंड अलग दिशाओं में अलग-अलग परिणाम देने वाली होती है। तो आइए जानते हैं कि किस तरह किस सूंड वाली मूर्ति की क्या विशेषता है
बाईं सूंड वाले गणेश जी की मूर्ति की विशेषता
गणेश जी की सूंड को अगर हम बाई ओर की तरफ मुड़ा देखते हैं तो इस तरीके की को हम इडा या चंद्र प्रभावित मानते हैं। जो हमारा बाया स्वर है। वह हमारी इडा नाडी को दर्शाता है। हमारी नाक में दो स्वर सूर्य व चंद्र श्वांस का आदान प्रदान करते समय चलते हैं। अगर हम बांयी नाक से सांस ले रहे हैं तो इसका अर्थ है कि हमारा बाया स्वर चल रहा है और हमारी इडा नाड़ी जागृत है तो इसका अर्थ है कि आज का दिन हमारा शांत और स्थिर रहने वाला है। गणेश की बायी तरफ सूंड वाली मूर्ति घर में स्थापित करने से घर में सुख शांति व समृद्धि आती है। घर का वातावरण सकारात्मक रहता है। भगवान गणेश की कृपा हम पर बनी रहती है।
गणेश जी की दाई तरफ मुड़ी सूंड वाली मूर्ती की विशेषता
हमारा दाया स्वर हमारी पिंगला नाड़ी को दर्शाता है ।हमारी जो नाड़ी जिस समय चलती है उससे हम ज्ञात कर कते हैं कि किस समय हमारा कौन सा स्वर चल रहा होता है। अगर हम दाहिनी नाक से सांस ले रहे हैं तो इसका अर्थ होता है कि हमारा दाहिना स्वर चल रहा है और हमारी पिंगला नाड़ी जागृत है। दाया स्वर जागृत होने का अर्थ है कि सूर्य की ऊर्जा से यह स्बर प्रभावित है और आज हमारा दिन ऊर्जावान रहने वाला है। जिस गणेश मूर्ति की सूंड दाहिनी तरफ मुड़ी होती है। ऐसी मूर्ति के स्वरूप की पूजा करने से बड़े से बड़े सकट दूर हो जाते हैं।
आपके शत्रु परास्त होते हैं और आपको हर क्षेत्र में विजय की प्राप्ति होती है। भगवान सिद्धिविनायक के मंदिर में भगवान गणेश की दाएं तरफ मुड़ी हुई सूंड वाली मूर्ति है। किंतु उसके नकारात्मक प्रभाव यह है कि आप अब हम बहुत जल्दी उग्र अवस्था में आ जाते हैं और बात बात पर अपना शक्ति प्रदर्शन करने लगते हैं। इसीलिए भगवान गणेश जी की दाहिनी तरफ सूंड वाली मूर्ति घरों में नहीं लगाई जाती। इस तरह की मूर्तियां भगवान के मंदिरों में ही स्थापित की जाती है।
इस तरह की मूर्ति ऑफिस में भी स्थापित नहीं की जाती। इस तरह की मूर्ति को काफी विधि विधान और नियम पूर्वक स्थापित किया जाता है और इसकी पूजा अर्चना विशेष विधि विधान से की जाती है। तंत्र शक्ति को जागृत करने के लिए भी दाहिनी सूंड वाले गणेश जी की ही पूजा की जाती है।
गणेश जी की बिना मुड़ी सूंड वाली मूर्ति की विशेषता
जब आपकी सांस दोनों नासाछिद्रों से एक समान चले अर्थात जब आपके दाएं और बाएं एक समान चलें तो उस अवस्था को सुषुम्ना अवश्था कहा गया है। जिस गणेश मूर्ति की सूंड सीधी अवस्था में होती है उस गणेश मूर्ति की अवस्था को सुषुम्ना अवस्था कहा गया है। सुषुम्ना अवस्था में गणेश मूर्ति की पूजा करने से साधक को रिद्धि सिद्धी व मोक्ष प्राप्त होता है। यह मूर्ति कुंडलिनी जागरण के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। मोक्ष प्राप्ति के लिए संत समाज सीधी सूंड वाले गणेश जी की आराधना करता है। सीधी सूंड वाले गणेश जी की मूर्ति आमतौर पर बहुत कम देखने को मिलती है इस तरह की मूर्ति हमेशा साधु संत व विरक्त जोगी लगाते हैं जोकि जन्म मरण के जाल से दूर होकर मोक्ष प्राप्त करना चाहते हैं।
गणेश जी की कौन सी सूंड वाली मूर्ति घर में रखना चाहिए
अलग-अलग विद्वानों के अनुसार घर में गणेश जी की मूर्ति लगाने के अलग अलग मत है कुछ लोग कहते हैं कि घर में दाएं तरफ सूंड वाली मूर्ति लगानी चाहिए और कुछ लोग कहते हैं कि घर में बायी तरफ सूंड वाली मूर्ति लगानी चाहिए। ऐसे में संशय होता है कि हमें किस प्रकार की मूर्ति लगानी चाहिए। एक भक्त को घर में भगवान गणेश की बाई तरफ सूंड वाली मूर्ति लगाने से कार्य में स्थिरता मिलती है। इस मूर्ति को लगाने से घर की आर्थिक समस्या दूर होती हैं। सुख शांति होती है और शीघ्र विवाह होता है, संतान सुख मिलता है। परिवार खुशहाल रहता है। जबकि दाएं तरफ सूंड वाली मूर्ति लगाने से गणेश जी आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। गणेश जी के इस रूप को सिद्धिविनायक कहा जाता है।
गणेश जी की सूंड कौन सी दिशा में होनी चाहिए
उनके दर्शन मात्र से हर कार्य सिद्ध हो जाते हैं। लेकिन इस प्रकार की मूर्ति घर में स्थापित करने पर आपको उसकी कड़े नियमों व विधि विधान पूर्वक पूजा करना आवश्यक है। इसलिए आप अपनी सामर्थ्य अनुसार बिना किसी संशय के किसी भी प्रकार की मूर्ति लगा कते हैं। बस आपको अपने आप को पवित्र रखना है। भगवान की सच्चे मन से बिना किसी छल कपट और दिखावे के सात्विकता व विधी विधान के साथ पूजा करनी है। भगवान हमेशा हर रूप में आपके साथ रहेंगे।