षटतिला एकादशी 2023

षटतिला एकादशी 2023? षटतिला एकादशी कब है

इस वर्ष 2023 में अधिक मास माघ माह में पड़ रहा है। हर वर्ष में 24 एकादशी होती है लेकिन जब अधिक मास या मलमास होता है तब एकादशी की संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। षटतिला एकादशी अधिक मास या मलमास में ही मनाई जाती है। षटतिला एकादशी में भगवान विष्णु नारायण का पूजन किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु नारायण की पूजा उपासना तिल से की जाती है‌ यह उपासना विधि छह प्रकार से होती है। इसमें तिल का छह विभिन्न प्रकार से प्रयोग होता है।

षटतिला एकादशी का शुभ मुहूर्त

2023 में षटतिला एकादशी 17 जनवरी 2023 के दिन शाम से शुरू होकर अगले दिन 18 जनवरी को समाप्त होगी। एकादशी प्रारम्भ का समय 17 जनवरी शाम 6.05 से शुरू होकर 18 जनवरी शाम 4 बजकर 3 मिनट तक रहेगा। विद्वानों के अनुसार एकादशी व्रत 18 जनवरी उदय तिथी को ही मनायी जायेगी। व्रत का पारण व्रत के खोलने को कहा जाता है। व्रत का पारण अगले दिन 19 जनवरी सुबह 7 बजकर 14 मिनट से 9 बजकर 21 मिनट तक रहेगा। विशेष परीस्थितियों में व्रत का पारण सूर्योदय के बाद किया जा सकता है।

षटतिला एकादशी कब की है और क्यों किया जाता है

षट्तिला एकादशी का व्रत माघ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है। इस व्रत का बहुत महत्व है यह व्रत भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए किया जाता है हमारे ऋषि मुनियों द्वारा षट्तिला एकादशी के दिन तिल के दान का महत्व स्वर्ण दान के बराबर बताया गया है। कहां जाता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति के जाने अंजाने में किये गये सभी पाप कर्मों से मुक्ति मिलती है। भगवान विष्णु को तिल अतिप्रिय है। कहा जाता है कि षटतिला एकादशी के दिन जो व्यक्ति जितने तिल का दान करता है उतने वर्ष तक वह वैकुंठ धाम में निवास करता है।

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षटतिला एकादशी व्रत कैसे किया जाता है

एकादशी के व्रत में पूजन के बाद भगवान विष्णु की कथा की जाती है और उसके बाद भगवान विष्णु के नाम का हवन किया जाता है। पूजन के बाद पारण करते समय तिल का दान अवश्य किया जाता है। एकादशी के दिन व्रत करने वाले व्यक्ति को स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहन लेनी चाहिए फिर भगवान का स्मरण कर संकल्प लेना चाहिए संकल्प लेते समय ईश्वर से अपनी इंद्रियों को संयम में रखने की और अपने पापों को दूर करने की प्रार्थना करनी चाहिए। ऐसा करते समय भगवान का संकल्प करना चाहिए। कपास, गाय के गोबर और तिल के कंडे बनाकर भगवान का पूजन करना चाहिए। हवन करते समय हवन करते समय तिल से आहुति देनी चाहिए‌। भगवान को नैवेद्य फल नन समर्पित करके स्तुति करनी चाहिए। अगले दिन पारण के समय खिचड़ी का भोग लगाना चाहिए। भगवान को सुपारी व नारियल से अर्घ्य देना चाहिए।
आज के दिन तिल को छह प्रकार से प्रयोग किया जाता है।

षटतिला एकादशी में तिल के छः प्रकार से प्रयोग

उबटन में तिल का प्रयोग

नहाने से पहले उबटन के रूप में तिल का प्रयोग किया जाता है। काले तिल को पीस कर उसे उबटन के रूप में प्रयोग किया जाता है। कहीं कहीं ‌पिसे‌ हुए तिल में आटा या बेसन मिलाकर
उसमें हल्दी पाउडर डालकर उबटन के रूप में प्रयोग किया जाता है। इस उबटन को पीस कर इसका बारीक पेस्ट बना लिया जाता है। इस उबटन को नहाने से पहले पूरे‌ शरीर पर लगाएं फिर पंद्रह बीस मिनट बाद उसे रगड़ कर छुटा दें। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी देंखें तो हम पाएंगे कि यह उबटन हमारे शरीर को कान्तिमय बनाए रखने में सहायक है।

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स्नान में तिल का प्रयोग

षटतिला एकादशी में स्नान करते समय तिल का प्रयोग किया जाता है। तिल को पानी में कुछ समय के लिए भिगो कर रख दिया जाता है। स्नान करते समय स्नान वाले जल में भिगोकर रखें हुए तिल मिलाकर उस जल से स्नान करना चाहिए।

हवन‌ मे तिल का प्रयोग

पूजा के समय तिल का प्रयोग किया जाता है। षटतिला एकादशी के दिन पूजा करते समय हवन के समय तिल की आहुति दी जाती है। आहुति देने के लिए प्रयोग ‌होने वाले कंडे मैं भी तिल का प्रयोग किया जाता है।

पीने वाले जल में तिल का प्रयोग

नहाने वाले पानी के साथ पीने वाले पानी में भी तिल का प्रयोग किया जाता है। कहा जाता है कि आज के दिन तिल का जितना अधिक प्रयोग किया जाता है। नारायण श्री हरी उतने ही ‌आपसे प्रसन्न होते हैं। पीने वाले जल में तिल डालकर कुछ समय रख देना चाहिए। षटतिला एकादशी के दिन उसी भीगे हुए तिल वाले जल को ग्रहण करना चाहिए।

भोजन में तिल का प्रयोग

षटतिला एकादशी वाले दिन भोजन में तिल का प्रयोग किया जाता है। इस दिन अपने भोजन को बनाने के लिए तिल का तेल प्रयोग किया जाता है। इस दिन तिल से बने भोज्य पदार्थ , व्यंजन, मिठाई अवश्य ग्रहण करने चाहिए। षटतिला एकादशी में तिल के लड्डू, तिल के तेल , गजक आदि का दान किया जाता है। आज के दिन तिल अवश्य खाना‌ चाहिये।

दान में तिल का प्रयोग

षटतिला एकादशी में सबसे अधिक आवश्यक होता है।तिल का दान भगवान विष्णु को तिल अतिप्रिय है। कहां जाता है कि स्वयं भगवान विष्णु ने अपने भक्तों को मुक्ति का यह मार्ग बतलाया है। जाने अंजाने अगर हमसे कुछ पाप कर्म हो जाते हैं। ‌किसी की निन्दा, अपमान हो जाता है तो हमें ‌श्री हरी‌ से क्षमा प्रार्थना करते हुए तिल का दान अवश्य करना चाहिए। क्षमा प्रार्थना के समय हमारे मन में छल कपट नहीं होना चाहिए। और आगे हमें दोबारा वह गलती नहीं दोहरानी चाहिए। भगवान हमारे सभी पाप कर्मों को क्षमा अवश्य करेंगें ।

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इस प्रकार उबटन, स्नान, तर्पण, आहुति, दान व सेवन इन छह प्रकार से षटतिला एकादशी में तिल का प्रयोग किया जाता है। इन छह प्रकार से तिल के प्रयोग से मनुष्य के सभी पाप कर्मों का नाश होता है। सभी प्रकार के कष्टों, रोगों से मुक्ति मिलती है। व्यक्ति स्वस्थ, सम्पन्न व समृद्ध होता है। इस प्रकार से हिन्दू धर्म में षटतिला एकादशी में तिल का‌ छह प्रकार से प्रयोग किया जाता है। हम देखेंगे कि तिल का ये छह प्रकार से प्रयोग हमारे तन और मन दोनों को सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण कर देगा। हमारे पूर्वजों ने हमें अपनी सांस्कृतिक विरासत के रूप में जो धरोहर दी है वो सचमुच नायाब है।

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