[vc_column_text]वास्तु एक प्राचीन विज्ञान है जो बताता है की काम करने और रहने वाली जगह का आर्किटेक्चर किस प्रकार का होना चाहिए। वास्तु के नियम के अनुसार बनायीं गई ईमारत प्रकृति के सारे लाभ उठाने मे मदद करती है। वास्तु वो विज्ञान है जिसकी वजह से सारी दिशाओं और मानव जाती के बीच संतुलन बना रहता है। [vc_custom_heading text=”वास्तु शास्त्र क्या है ?” font_container=”tag:h2|text_align:center|color:%23ff0000″][vc_single_image image=”84″ img_size=”full”][vc_column_text]
वास्तु शास्त्र वो है जो विज्ञानं, कला, खगोल, और ज्योतिष को जोड़ता है। यह डिजाइनिंग का और ईमारत बनाने का एक विज्ञान है। वास्तु शास्त्र की मदद से हम हमारी जिंदगी को एक बेहतर जिंदगी बना सकती है। हमे हमेशा वास्तु शास्त्र के नियम के अनुसार ही बिल्डिंग बनानी चाहिए। और ना सिर्फ बिल्डिंग बल्कि वास्तु के अनुसार शौचालय, सीढ़ी भी बनाये जाने चाहिए । घर के साथ साथ ऑफिस का वास्तु भी एक बहुत जरुरी पहलु है वास्तु शास्त्र के नियमो का पालन करने से जीवन सुखमय रहता है। [vc_message]
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[/vc_message][vc_custom_heading text=”पंचतत्व का महत्व -वास्तुशास्त्र में दिशाओं का महत्व” font_container=”tag:h2|text_align:center|color:%23ff0000″][vc_column_text]
वास्तु मे प्रकृति के 5 तत्त्व बहुत जरूरी होते हैं । यह 5 तत्त्व हैं हवा, जल, धरती, आग और अंतरिक्ष। कोई भी सरंचना जो इन तत्वों के या 4 दिशाओं के अनुसार नई होती वो कभी ना कभी मुसीबतें झेलती है। जो इमारतें वास्तु शास्त्र के नियमो के अनुसार बनायीं जाती है वो ईमारत वहां रहने वाले लोगों के लिए कभी ना कभी सौभाग्यशाली साबित होती है। वास्तु शास्त्र के विचार के पीछे आर्किटेक्चर डिज़ाइन और प्रकृति और उसके आध्यात्मिक विश्वासों का एकीकरण करना है। वास्तु शास्त्र का सिद्धांत इमारतों की सरंचना मे प्राचीन वक़्त से इस्तेमाल किया जा रहा है और आज भी किया जाता है। मकान, मंदिर और भवन के निर्माण के लिए इस्तेमाल किये जाने वाला प्राचीन विज्ञानं है। कभी कभी वास्तु शास्त्र को आधुनिक समय के विज्ञान का स्वरुप माना जाता है। [vc_custom_heading text=”वास्तु के तत्त्व” font_container=”tag:h2|text_align:center|color:%23ff0000″][vc_column_text]डिज़ाइन का कार्य समझने के लिए जरूरी है इन 5 तत्वों को समझना:
इनमे क्या क्या चीजे देखी जाती है
धरती
प्रकृति का सबसे पहला तत्त्व जो सबसे जयदा ऊर्जा उत्त्पन करता है, धरती । भूमि खरीदने से पहले जरूरी है उसका परामर्श करना क्यूंकि वास्तु मे भूमि की मिटटी और क्षेत्र जरूरी होता है । वास्तु मे यह तत्त्व सबसे जरूरी है । जलधरती पे जल अनेक रूपों मे उपलभ्द है। जेसे की बारिश, समुद्र और नदियां। वास्तु मे यह दूसरा जरूरी तत्त्व है । वास्तु जल स्रोतों का सही प्लेसमेंट बताता है। जल ईशान कोण का तत्त्व है इसीलिए घर का जल ईशान कोण की ओर से ही बहार निकलना चाहिए । जल के लिए ईशान कोण दिशा उपयुक्त है। [vc_column_text]
अग्नि
अग्नि दक्षिण पूर्व दिशा का तत्त्व है। वास्तु के अनुसार घर मे रसोई में आग और बिजली के उपकरणों हमेशा दक्षिण पूर्व दिशा मे रखना चाहिए। सारे ऊर्जा के स्रोतों का आधार अग्नि है। वास्तु के अनुसार घर मे सूरज की रौशनी के लिए हवादार सही होना चाहिए।
वायु
वायु सबसे जरूरी है सारे जीवित लोगों के लिए धरती पर। वास्तु मे वायु एक और जरूरी तत्त्व है। वायु भी ईशान कोण दिशा का तत्त्व है। वायु अनेक गैसों का समूह है। जैसे की ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, हीलियम और कार्बन डाइऑक्साइड। इन सभी गैसों का संतुलित प्रतिशत जरूरी है मानव जाती के लिए। वास्तु के अनुसार घर मे खिड़कियों और दरवाज़ों की दिशाएं बहुत जरूरी है।
ब्रह्माण्ड
वास्तु शास्त्र अनेक प्रकार की दिशाएं बताता है बेहतर स्पेस के लिए। वास्तु के अनुसार घर के केंद्र मे खुली जगह होनी चाहिए।
वास्तुशास्त्र में दिशाओं का महत्व
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वास्तु मे उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम मूल दिशाएं है।
वास्तुशास्त्र दिशा-पूर्व दिशा
वास्तु शास्त्र मे यह दिशा बहुत जरूरी है। यह सूर्य उदय की दिशा है। वास्तु शास्त्र के अनुसार भवन बनाते वक़्त यह दिशा सबसे ज्यादा खुली रेहनी चाहिए। इस दिशा मे वास्तु दोष होने से वहां रहने वाले लोग बीमार रहते है।परेशान और चिंतित रहना भी इस दिशा मे वास्तु दोष होने के लक्षण है।
वास्तुशास्त्र दिशा- आग्नेय दिशा
आग्नेय दिशा पूर्व और दक्षिण दिशा की मध्य दिशा होती है। इस दिशा मे वास्तु दोष होने से घर मै अशांति और तनाव रहता है। जब यह दिशा शुभ होती है तब घर मे रहने वाले स्वस्थ रहते है। अग्नि तत्वे के सारे कार्यों के लिए यह दिशा शुभ होती है।
वास्तु शास्त्र मे दिशा – दक्षिण दिशा
वास्तु शास्त्र मे यह दिशा सुख और समृद्धि का प्रतिक होती है। इस दिशा मे वास्तु दोष होने से मान सामान और रोज़गार मे परेशानिया होती है।
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वास्तु शास्त्र मे दिशा
नैऋत्य दिशानैऋत्य दिशा दक्षिण और पश्चिम दिशा के मध्य दिशा होती है। दुर्घटना, रोग और मानसिक अशांति इस दिशा मे वास्तु दोष क लक्षण है। इस दिशा मे वास्तु दोष आपके आचरण और व्यव्हार को भी प्रभावित करती है। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर बनाते वक़्त इस दिशा को बाहरी रखना चाहिए। वास्तु शास्त्र मे दिशा – इशान दिशावास्तु शास्त्र के अनुसार शौचालय इस दिशा मे नहीं होना चाहिए।
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